ब्लागरों की अपेक्षाओं पर विकसित हो 'हमारीवाणी'

मित्रों !
ब्रॉड-बैंड कनेक्शन मिलने के कुछ ही माह में मेरी भेंट हिन्दी ब्लाग जगत से हो गई थी। पहली नजर में यह ताजा और पुरानी साहित्यिक रचनाएँ पढ़ने के लिए एक अच्छा स्थान था। लेकिन कुछ ही दिनों में यह अहसास हो चला कि ब्लाग एक ऐसा माध्यम है जिस पर कुछ भी लिखा जा सकता है, और लिखा ही क्यों, यहाँ देखा-दिखाया और सुना-सुनाया भी जा सकता है। यहाँ कोई सम्पादकीय बाधा भी नहीं है। बस आप लिखिए, एक क्लिक कीजिए और आप का लिखा तुरंत लोगों के सामने होगा। अब लोगों की मर्जी कि वे आप के लिखे को देखते, लिखते, पढ़ते, सुनते हैं या नहीं। कुछ दिन ब्लाग पढते रहने के बाद मैं उन पर टिप्पणियाँ करने लगा। लोगों को लगा कि मैं लिख सकता हूँ, तो एक स्थापित ब्लागर की ओर से यह सुझाव भी आया कि मुझे अपना खुद का ब्लाग बनाना चाहिए। पहले तो मुझे भय हुआ, कि  मैं ब्लाग बना तो लूँ, पर वहाँ लिखूंगा क्या? जो लिखूंगा उस का कोई पाठक भी होगा या न होगा? मेरे ब्लाग को लोग कैसे जानेंगे? फिर ब्लाग बनाया, लेकिन कई दिन कुछ नहीं लिख सका। भय कुछ कम हुआ तो 'तीसरा खंबा' लिखने लगा। पहली पोस्ट पर कोई टिप्पणी नहीं थी। दूसरी पोस्ट पर टिप्पणी आई। पर पाठक इक्का-दुक्का ही रहे। उन्हीं स्थापित ब्लागर से पूछा, भाई पाठक कहाँ से आएंगे? तो जवाब मिला -आएंगे भी, और इधर उधर से जुटाने भी पड़ेंगे।  कैसे? यह उन्हों ने नहीं बताया।
न दिनों 'चिट्ठा जगत' और 'ब्लागवाणी' दोनों ही अपने चरम पर थे। दोनों में पंजीकरण कराया, वहाँ से पाठक आने लगे। तब यह समझ आ गया कि हिन्दी ही नहीं अपितु किसी भी भाषा की ब्लागीरी के लिए ब्लाग-संकलक आवश्यक तंत्र है। यूँ तो हिन्दी ब्लागों के लिए और भी संकलक थे। पर इन दोनों की बराबरी कोई नहीं कर पाया। फिर 'ब्लागवाणी' कोमा में चली गई। कोमा में इसलिए कि वह अभी हाल तक चालू थी, बस जहाँ रुकी थी, वहीं रुकी हुई थी। इस से यह आशा बनती थी कि वह कभी भी फिर से चालू हो सकती है।  कुछ दिनों पहले वह रुकी हुई 'ब्लागवाणी' गायब हो गई। इस से दो संभावनाएँ बनी हैं। एक तो ये कि 'ब्लागवाणी' हमेशा के लिए हम से विदा हो चुकी है, दूसरा यह कि वह नए रूप में लौटने के लिए कमर कस रही है। पिछले वर्ष के अंत में अचानक बिना किसी घोषणा के 'चिट्ठा-जगत' गायब हो गया। हिन्दी ब्लाग जगत में एक बड़ी रिक्तता महसूस हुई। पर ऐसा कभी नहीं होता कि जिस चीज की जरूरत हो वह अचानक सिरे से गायब हो जाए। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो उस की जरूरत की चीजों को ईजाद कर लेता है। ऐसे में हमारीवाणी अस्तित्व में आई। कुछ ब्लागर ही थे जिन्हों ने ठान लिया था कि वे एक ब्लाग संकलक ले कर आएंगे, जो ब्लागरों का होगा। कुछ ही दिनों में लगने लगा कि हमारीवाणी ऐसा संकलक हो सकता है जो हिन्दी ब्लागरों के अभाव को दूर कर सकता है।
मारीवाणी  की एक विशेषता  है कि यहाँ पंजीकरण के बिना स्वयमेव कोई ब्लाग स्थान नहीं पा सकता था, दूसरी ये कि ब्लाग-पोस्ट प्रकाशित करने के बाद यहाँ तभी दिखाई दे सकती है जब कि ब्लाग पोस्ट पर लगे हमारी वाणी विजेट पर क्लिक किया जाए। मुझे नहीं लगता कि ये दोनों बातें किसी ब्लागर के लिए परेशानी का विषय हो सकती हैं। एक ब्लागर अपनी पोस्ट को प्रकाशित करने के उपरांत एक बार देखता अवश्य है। जब वह अपनी ब्लाग पोस्ट को पहली बार देख रहा हो, तभी वह हमारीवाणी विजेट पर क्लिक भी कर सकता है।  ये दोनों विशेषताएँ होने का कारण तकनीकी है। इस से हमारी वाणी को हमेशा यह सर्च नहीं करते रहनी पड़ती है कि किस ब्लाग पर नई पोस्ट प्रकाशित हुई है, इन विशेषताओं से हमारीवाणी के डाटा संग्रह पर वजन कम पड़ता है और अंतर्जाल पर ट्रेफिक की समस्या खड़ी नहीं होती। यह किसी भी एग्रीगेटर को लंबे समय तक अपना काम करने के लिए सुविधा प्रदान करती है। हमारीवाणी के साथ एक बात यह भी थी कि ब्लागरों को यह जानकारी नहीं हो रही थी कि आखिर इस संकलक का संचालन कैसे और कौन कर रहा है? वह कमी भी तब पूरी हो गई जब इस का एक घोषित सलाहकार मंडल सामने आ गया है। इस में सभी लोग हिन्दी ब्लाग जगत के  सुपरिचित और विश्वसनीय लोग हैं।  इस बीच हमारीवाणी एग्रीगेटर की 'हमारीवाणी ई-पत्रिका' भी सामने आ चुकी है। ब्लागपोस्टें पढ़ने के लिए इन दिनों मोबाइल फोन का उपयोग बढ़ रहा है, इसे देखते हुए अनेक ब्लागरों ने यह सुझाव दिया था कि इस का मोबाइल संस्करण भी होना चाहिए। 'हमारीवाणी'  ने तुरंत इस सुझाव पर काम किया और पिछले सप्ताह अपना मोबाइल संस्करण आरंभ कर दिया। इसे m.hamarivani.com अथवा  mobile.hamarivani.com पर देखा जा सकता है।
ब्लाग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है, जहाँ कुछ भी अभिव्यक्त किया जा सकता है। लेकिन इस का अर्थ यह भी नहीं कि ब्लाग पर कुछ भी लिख दिया जाए। आखिर मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समाज के आवश्यक नियमों का पालन करने पर ही सामाजिक कहा जा सकता है। मनुष्य विचारशील प्राणी है और उस के विचारों में विविधता है। ब्लागरी में भी अनेक के विचारों वाले मौजूद हैं, सभी अपने विचारों को प्रकट करना चाहते हैं। ब्लाग ने यही तो सुविधा दी है कि कोई भी बिना किसी संपादन के अपने विचारों को प्रकट कर सके।  आधुनिक जनतंत्र अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह भी नहीं कि वे कुछ भी लिखें, उन्हें मानव समाज की सामान्य मर्यादाओं का ख्याल तो रखना ही होगा। हम जानते हैं कि कौन सी बातें हैं जो सार्वजनिक रूप से कही जानी चाहिए और कौन सी हैं जो नहीं कही जानी चाहिए? सार्वजनिक रूप से किस भाषा का प्रयोग करना चाहिए और किस का नहीं? ये सब मर्यादाएँ सभी सभ्य समाजों में लगभग एक जैसी हैं। भाषा को जो रूप नित्य की बोलचाल में प्रचलित है, वह छापे में या अंतर्जाल पर नहीं हो सकता। इस का मुख्य कारण भी है कि जो हम बोलते हैं वह कहीं दर्ज नहीं होता। यदि उसे दर्ज होना हो तो हमारी भाषा पृथक होगी। हमें सार्वजनिक रूप से उस भाषा का प्रयोग करना चाहिए। जिसे के लिए हमें कहीं भी शर्म का सामना न करना पड़े।  हमारा यह गुण ब्लागरी में भी बना रहना चाहिए। कुछ लोग हैं, जो इस बात से सहमति नहीं रखते। लेकिन समाज इस की अनुमति नहीं देता। पिछले दिनों हम ने देखा कि  कुछ ब्लागों पर  यौनिक गालियों का प्रयोग हो रहा  है, चाहे वह ब्लागपोस्ट में हो या टिप्पणियों में। ब्लाग पोस्ट तो स्वयं ब्लागर ही लिखता है, जो कुछ वहाँ प्रकाशित होता है उस पर उस का नियंत्रण होता है। लेकिन ब्लाग स्वामी के पास यह सुविधा है कि टिप्पणियाँ रोकी या हटाई जा सकती हैं, तो इस तरह टिप्पणियों पर भी उस का नियंत्रण होता है। यदि कानून की दृष्टि से देखा जाए तो एक प्रकाशन माध्यम पर प्रकाशक का पूर्ण नियंत्रण होता है, उस पर जो कुछ भी प्रकाशित होता है उसे वह नियंत्रित कर सकता है। हमारीवाणी सलाहकार मंडल इस मामले में आरंभ से ही सर्वसम्मत था कि हमारीवाणी पर अपनी पोस्टों में आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग करने और टिप्पणियों में ऐसी भाषा के प्रयोग को अपने ब्लाग पर उपयोग करने की अनुमति देने वाले ब्लागों के लिए कोई स्थान नहीं होगा।
मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि लिखी-छपी, वाचिक और दृश्य प्रस्तुतियों में एक सामाजिक शुचिता होनी चाहिए। ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता जो शुचिता रखते हुए अभिव्यक्त न किया जा सकता हो। हम शुचिता रखते हुए भी तगड़ी से तगड़ी बहस कर सकते हैं, कोई आवश्यकता नहीं कि हमें उस के लिए यौन अंगों  और क्रियाओं का स्मरण करना पडे़। तब हमें उन शब्दों की आवश्यकता ही क्या? कुछ ब्लागों पर इस शुचिता का अतिक्रमण होने लगा तो शिकायत मिलने पर हमारीवाणी सलाहकार मंडल द्वारा विचार करने पर यह बात सामने आई कि ब्लाग-स्वामी को स्वंतत्रता है कि वह अपने ब्लाग पर कुछ भी करे, और किसी को भी कुछ भी करने दे और वह चाहे तो इसे नियंत्रित करे। लेकिन यह स्वतंत्रता हमारीवाणी संकलक को भी  है कि वह इस तरह के ब्लागों की सदस्यता बनी रहने दे या समाप्त कर दे। हमारीवाणी ने अपनी इसी स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए निर्णय लिया कि वह अपने यहाँ ऐसे ब्लागों को स्थान नहीं देगा जहाँ इस सामाजिक शुचिता को भंग किया जाता है। जब भी यह सूचना मिली कि किसी ब्लाग पर इस शुचिता को भंग किया गया है तो आग्रह किया गया कि वे अपने ब्लाग पर से इस सामग्री को हटा दें और भविष्य में अपने ब्लाग पर शुचिता के पालन का आश्वासन दें। जब इस आग्रह का कोई असर नहीं दिखाई दिया तो उन ब्लागों को हमारीवाणी से हटा दिया गया। यह हमारीवाणी का संकल्प है कि वह कम से कम अपने यहाँ इस शुचिता को बनाए रखेगी।
स के अतिरिक्त कुछ ब्लाग-स्वामी इस तरह की इच्छा रखते हैं कि किसी भी संकलक पर वे और उन की पोस्टें सब से ऊपर विशिष्ठता प्राप्त करती रहें। इस के लिए उन्हें करतब करने की जरूरत होती है। वे तकनीक को छका कर ऐसा करना चाहते हैं। उन का एक करतब पकड़ा जाता है तो वे दूसरा तलाश लेते हैं। लेकिन इस से अन्य ब्लागरों की पोस्टें पीछे चली जाती हैं, उन के साथ अन्याय होता है। हालांकि इस तरह अपने ही साथी ब्लागरों के साथ अन्याय करने वाले करतबी ब्लागीर अपने ब्लाग पर न्याय के रहनुमा बने रहते हैं। हमारीवाणी ने ऐसे करतबी ब्लाग स्वामियों के भी कुछ ब्लाग  अपने संकलक पर से कम किए हैं।
मारी-वाणी ब्लागरों का अपना संकलक है। शायद यह हिन्दी का पहला संकलक भी है जिस के संचालक अपने उपयोगकर्ताओं के साथ जीवन्त संपर्क बनाए रखने में विश्वास रखते हैं। वे  चाहते हैं कि उन्हें इस संकलक से जो अपेक्षाएँ/असुविधाएँ हैं, उन्हें वे खुल कर बताएँ। जिस से उन असुविधाओं को दूर किया जा सके और हमारीवाणी को उस के उपयोगकर्ताओं की आशा और अपेक्षाओं के अनुसार विकसित किया जा सके। यह प्रसन्नता की बात है कि हमारीवाणी को अल्पकाल में ही अनपेक्षित लोकप्रियता मिली है। प्रतिदिन नए ब्लाग इस से जुड़ रहे हैं। सदस्यों की संख्या 1050 से ऊपर जा चुकी है। लेकिन एक संकलक के लिए यह संख्या  बहुत कम है। आशा है हमारीवाणी की लोकप्रियता तेजी से बढ़ेगी और ब्लागरों का खुद का यह संकलक शीघ्र ही भारतीय ब्लागरों का सर्वप्रिय स्थान बनेगा।
धन्यवाद!
आपका - दिनेशराय द्विवेदी

अब हमारीवाणी का मोबाइल संस्करण

प्रिय  मित्रों!
स्नेहपूर्ण अभिवादन!
हुत समय से हमारीवाणी के मित्र और सदस्य यह सुझाव दे रहे थे कि हमारीवाणी संकलक का मोबाइल संस्करण भी होना चाहिए जिस से उस पर अपडेट होने वाली ब्लाग पोस्टों की जानकारी उन्हें मोबाइल पर प्राप्त हो सके। हम ने इस दिशा में प्रयत्न किया और सफल हुए। आप को यह जान कर अवश्य प्रसन्नता होगी  कि हमारीवाणी का मोबाइल संस्करण न केवल तैयार हो कर आरंभ हो चुका है, अपितु सफलता पूर्वक काम कर रहा है। हमारीवाणी के इस मोबाइल संस्करण को आप http://m.hamarivani.com अथवा http://mobile.hamarivani.com पर क्लिक कर के खोल सकते हैं।  
-दिनेशराय द्विवेदी

हमारीवाणी ई-पत्रिका का शुभारम्भ!

प्रिय हमारीवाणी मित्रों!


आपके अपार स्नेह एवं उत्साहवर्धन का ही यह नतीजा है कि हमारीवाणी हिंदी भाषा के प्रचार एवं प्रसार के संकल्प को आगे बढ़ाते हुए प्रिंट एवं ऑनलाइन पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम बढ़ा रहा है. हमारे इस प्रयास का ध्येय भी उभरते हुए हिंदी लेखकों के लेखन को सामने लाना ही है.

इस दिशा में पहल करते हुए आज 'हमारीवाणी' ई-पत्रिका का शुभारम्भ हो गया है, आज प्रकाशित होने वाले लेख हैं:

हमारीवाणी ई-पत्रिका को आप इस पते http://news.hamarivani.com/ पर देख पाएँगे. इसके लिए आप सभी सुधी लेखकों से निम्नलिखित विषयों पर लेख आमंत्रित हैं.


* समाज
* ब्लॉग-राग
* देश-दुनिया
* राजनीति
* साहित्य
* विचार-मंच
* मनोरंजन
* खेल-खिलाड़ी

हर एक लेख 500 से 1000 शब्दों के बीच ही होने चाहिए, तथा प्रेषक के द्वारा स्वत: लिखित होना चाहिए (हर एक लेख / रचना को इस घोषणा के साथ ही हमें प्रेषित करें कि लेख आपका अपना लिखा हुआ है). आप अपना लेख / रचना संपादक को news@hamarivani.com पर भेज सकते हैं.

संपादक मंडल के बारे में जानने के लिए यहाँ चटका (Click) लगाएं.

धन्यवाद!
टीम हमारीवाणी